NCERT Solutions Class 10 Hindi Unit 1 Chapter 16 – Download PDF

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Get here NCERT Solutions Class 10 Hindi Unit 1 Chapter 16. These NCERT Solutions for Class 10 of Hindi Unit 1 subject includes detailed answers of all the questions in Chapter 16 – Yatindra Mishra provided in NCERT Book which is prescribed for class 10 in schools.

Book: National Council of Educational Research and Training (NCERT)
Class: 10th Class
Subject: Hindi Unit 1
Chapter: Chapter 16 – Yatindra Mishra

NCERT Solutions Class 10 Hindi Unit 1 Chapter 16 – Free Download PDF

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NCERT Solutions Class 10 Hindi Unit 1 Chapter 16 – Yatindra Mishra

Question 1:

शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?

Answer:

मशहूर शहनाई वादक “बिस्मिल्ला खाँ” का जन्म डुमराँव गाँव में ही हुआ था। इसके अलावा शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है, जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। रीड, नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यत: सोन नदी के किनारे पाई जाती है। इसी कारण शहनाई की दुनिया में डुमराँव का महत्व है।

Question 2:

बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?

Answer:

शहनाई मुख्यत: मांगलिक अवसरों पर ही बजाया जाता है। कहा जाता है कि यह मंगल ध्वनि पैदा करने वाला वाद्य यंत्र है। खाँ साहब इसी के द्वारा मंगल ध्वनि बजाते थे। शहनाई वादक के रूप में उनका स्थान सर्वश्रेष्ठ है। यही कारण है कि उन्हें शहनाई की मंगलध्वनि का नायक कहा गया है। 15 अगस्त, 26 जनवरी, शादी अथवा मंदिर जैसे मांगलिक स्थलों में शहनाई बजाकर शहनाई के क्षेत्र में इन्होंने शोहरत हासिल की है। इनकी जैसी मंगल ध्वनि शायद ही कोई निकाल पाया हो।

Question 3:

सुषिर-वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?

Answer:

अरब देश में फूँककर बजाए जाने वाले वाद्य जिसमें नाड़ी (नरकट या रीड) होती है, को ‘सुषिर-वाद्य’ कहते हैं। शहनाई को भी फूँककर बजाया जाता है। यह अन्य सभी सुषिर वाद्यों में श्रेष्ठ है। इसलिए शहनाई को ‘सुषिर-वाद्यों’ में शाह’ का उपाधि दी गई है।

Question 4:

आशय स्पष्ट कीजिए –

(क) ‘फटा सुर न बख्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।’

(ख) ‘मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।’

Answer:

(क) यहाँ बिस्मिल्ला खाँ ने सुर तथा कपड़े में तुलना कर सुर को अधिक मूल्यवान कहा है। क्योंकि कपड़ा यदि एक बार फट जाए तो दुबारा सिल देने से ठीक हो सकता है। परन्तु किसी का फटा हुआ सुर कभी ठीक नहीं हो सकता है। इसलिए वह यह प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर उन्हें अच्छा कपड़ा अर्थात् धन-दौलत दें या न दें लेकिन अच्छा सुर अवश्य दें।

(ख) बिस्मिल्ला खाँ पाँचों वक्त नमाज़ के बाद खुदा से सच्चा सुर पाने की प्रार्थना करते थे। वे खुदा से कहते उन्हें सच्चा सुर दे। उस सुर में इतनी ताकत हो कि उसे सुनने वालों की आँखों से सच्चे मोती की तरह आँसू निकल जाए। यही उनके सुर की कामयाबी होगी।

Question 5:

काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे?

Answer:

काशी से बहुत सी परंपराएँ लुप्त हो गई है। संगीत, साहित्य और अदब की परंपर में धीरे-धीरे कमी आ गई है। अब काशी से धर्म की प्रतिष्ठा भी लुप्त होती जा रही है। वहाँ हिंदु और मुसलमानों में पहले जैसा भाईचारा नहीं है। पहले काशी खानपान की चीज़ों के लिए विख्यात हुआ करता था। परन्तु अब उनमें परिवर्तन हुए हैं। काशी की इन सभी लुप्त होती परंपराओं के कारण बिस्मिल्ला खाँ दु:खी थे।

Question 6:

पाठ में आए किन प्रसंगों के आधर पर आप कह सकते हैं कि –

(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।

(ख) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इनसान थे।

Answer:

(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली जुली संस्कृति के प्रतीक थे। उनका धर्म मुस्लिम था। मुस्लिम धर्म के प्रति उनकी सच्ची आस्था थी परन्तु वे हिंदु धर्म का भी सम्मान करते थे। मुहर्रम के महीने में आठवी तारीख के दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते थे व दालमंडी मे फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते जाते थे।

इसी तरह इनकी श्रद्धा काशी विश्वनाथ जी के प्रति भी अपार है। वे जब भी काशी से बाहर रहते थे। तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते थे और उसी ओर शहनाई बजाते थे। वे अक्सर कहा करते थे कि काशी छोड़कर कहाँ जाए, गंगा मइया यहाँ, बाबा विश्वनाथ यहाँ, बालाजी का मंदिर यहाँ। मरते दम तक न यह शहनाई छूटेगी न काशी।

(ख) बिस्मिल्ला खाँ एक सच्चे इंसान थे। वे धर्मों से अधिक मानवता को महत्व देते थे, हिंदु तथा मुस्लिम धर्म दोनों का ही सम्मान करते थे, भारत रत्न से सम्मानित होने पर भी उनमें घमंड नहीं था, दौलत से अधिक सुर उनके लिए ज़रुरी था।

Question 7:

बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया?

Answer:

बिस्मिल्ला खाँ के जीवन में कुछ ऐसे व्यक्ति और कुछ ऐसी घटनाएँ थीं जिन्होंने उनकी संगीत साधना को प्रेरित किया।

(1) बालाजी मंदिर तक जाने का रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर जाता था। इस रास्ते से कभी ठुमरी, कभी टप्पे, कभी दादरा की आवाज़ें आती थी। इन्हीं गायिका बहिनों को सुनकर इन्हें प्रेरणा मिली।

(2) बिस्मिल्ला खाँ जब सिर्फ़ चार साल के थे तब छुपकर अपने नाना को शहनाई बजाते हुए सुनते थे। रियाज़ के बाद जब उनके नाना उठकर चले जाते थे तब अपनी नाना वाली शहनाई ढूँढते थे और उन्हीं की तरह शहनाई बजाना चाहते थे।

(3) बचपन में वे बालाजी मंदिर पर रोज़ शहनाई बजाते थे। इससे शहनाई बजाने की उनकी कला दिन-प्रतिदिन निखरने लगी।

Question 8:

बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?

Answer:

बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की निम्नलिखित बातें हमें प्रभावित करती हैं –

(1) ईश्वर के प्रति उनके मन में अगाध भक्ति थी।

(2) मुस्लिम होने के बाद भी उन्होंने हिंदु धर्म का सम्मान किया तथा हिंदु-मुस्लिम एकता को कायम रखा।

(3) भारत रत्न की उपाधि मिलने के बाद भी उनमें घमंड कभी नहीं आया।

(4) वे एक सीधे-सादे तथा सच्चे इंसान थे।

(5) उनमें संगीत के प्रति सच्ची लगन तथा सच्चा प्रेम था।

(6) वे अपनी मातृभूमि से सच्चा प्रेम करते थे।

Question 9:

मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।

Answer:

मुहर्रम के महीने में शिया मुसलमान शोक मनाते थे। इसलिए पूरे दस दिनों तक उनके खानदान का कोई व्यक्ति न तो मुहर्रम के दिनों में शहनाई बजाता था और न ही संगीत के किसी कार्यक्रम में भाग लेते थे। आठवीं तारीख खाँ साहब के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती थी। इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते और दालमंड़ी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते हुए जाते थे। इन दिनों कोई राग नहीं बजता था। उनकी आँखें इमाम हुसैन और उनके परिवार के लोगों की शहादत में नम रहती थीं।

Question 10:

बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे, तर्क सहित उत्तर दीजिए।

Answer:

बिस्मिल्ला खाँ भारत के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक थे। इसके लिए उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया है। 90 वर्ष की उम्र में भी उन्होंने शहनाई बजाना नहीं छोड़ा। उन्होंने जीवनभर संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने अंदर जिंदा रखा। उनमें संगीत को सीखने की इच्छा कभी खत्म नहीं हुई। खुदा के सामने वे गिड़गिड़ाकर कहते – ”मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।” खाँ साहब ने कभी भी धन-दौलत को पाने की इच्छा नहीं की बल्कि उन्होंने संगीत को ही सर्वश्रेष्ठ माना। वे कहते थे – ”मालिक से यही दुआ है – फटा सुर न बख्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।”

इससे यह पता चलता है कि बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे।

Question 11:

निम्नलिखित मिश्र वाक्यों के उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए –

(क) यह ज़रुर है कि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं।

(ख) रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है।

(ग) रीड नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यत: सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है।

(घ) उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा।

(ङ) हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है।

(च) खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।

Answer:

(क) शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। (संज्ञा आश्रित उपवाक्य)

(ख) जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। (विशेषण आश्रित उपवाक्य)

(ग) जो डुमराँव में मुख्यत: सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। (विशेषण आश्रित उपवाक्य)

(घ) कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा। (संज्ञा आश्रित उपवाक्य)

(ङ) जिसकी गमक उसी में समाई है। (विशेषण आश्रित उपवाक्य)

(च) पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा। (संज्ञा आश्रित उपवाक्य)

Page No 123:

Question 12:

निम्नलिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में बदलिए–

(क) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं।

(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।

(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।

(घ) काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।

Answer:

(क) यह वही बालसुलभ हँसी है जिसमें कई यादें बंद हैं।

(ख) काशी में संगीत का आयोजन होता है जो कि एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।

(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न हमको लुंगिया पे नाहीं, शहनईया पे मिला है, ।

(घ) यह जो काशी का नायाब हीरा है वह हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।

Page No 122:

Question 1:

शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?

Answer:

मशहूर शहनाई वादक “बिस्मिल्ला खाँ” का जन्म डुमराँव गाँव में ही हुआ था। इसके अलावा शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है, जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। रीड, नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यत: सोन नदी के किनारे पाई जाती है। इसी कारण शहनाई की दुनिया में डुमराँव का महत्व है।

Question 2:

बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?

Answer:

शहनाई मुख्यत: मांगलिक अवसरों पर ही बजाया जाता है। कहा जाता है कि यह मंगल ध्वनि पैदा करने वाला वाद्य यंत्र है। खाँ साहब इसी के द्वारा मंगल ध्वनि बजाते थे। शहनाई वादक के रूप में उनका स्थान सर्वश्रेष्ठ है। यही कारण है कि उन्हें शहनाई की मंगलध्वनि का नायक कहा गया है। 15 अगस्त, 26 जनवरी, शादी अथवा मंदिर जैसे मांगलिक स्थलों में शहनाई बजाकर शहनाई के क्षेत्र में इन्होंने शोहरत हासिल की है। इनकी जैसी मंगल ध्वनि शायद ही कोई निकाल पाया हो।

Question 3:

सुषिर-वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?

Answer:

अरब देश में फूँककर बजाए जाने वाले वाद्य जिसमें नाड़ी (नरकट या रीड) होती है, को ‘सुषिर-वाद्य’ कहते हैं। शहनाई को भी फूँककर बजाया जाता है। यह अन्य सभी सुषिर वाद्यों में श्रेष्ठ है। इसलिए शहनाई को ‘सुषिर-वाद्यों’ में शाह’ का उपाधि दी गई है।

Question 4:

आशय स्पष्ट कीजिए –

(क) ‘फटा सुर न बख्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।’

(ख) ‘मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।’

Answer:

(क) यहाँ बिस्मिल्ला खाँ ने सुर तथा कपड़े में तुलना कर सुर को अधिक मूल्यवान कहा है। क्योंकि कपड़ा यदि एक बार फट जाए तो दुबारा सिल देने से ठीक हो सकता है। परन्तु किसी का फटा हुआ सुर कभी ठीक नहीं हो सकता है। इसलिए वह यह प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर उन्हें अच्छा कपड़ा अर्थात् धन-दौलत दें या न दें लेकिन अच्छा सुर अवश्य दें।

(ख) बिस्मिल्ला खाँ पाँचों वक्त नमाज़ के बाद खुदा से सच्चा सुर पाने की प्रार्थना करते थे। वे खुदा से कहते उन्हें सच्चा सुर दे। उस सुर में इतनी ताकत हो कि उसे सुनने वालों की आँखों से सच्चे मोती की तरह आँसू निकल जाए। यही उनके सुर की कामयाबी होगी।

Question 5:

काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे?

Answer:

काशी से बहुत सी परंपराएँ लुप्त हो गई है। संगीत, साहित्य और अदब की परंपर में धीरे-धीरे कमी आ गई है। अब काशी से धर्म की प्रतिष्ठा भी लुप्त होती जा रही है। वहाँ हिंदु और मुसलमानों में पहले जैसा भाईचारा नहीं है। पहले काशी खानपान की चीज़ों के लिए विख्यात हुआ करता था। परन्तु अब उनमें परिवर्तन हुए हैं। काशी की इन सभी लुप्त होती परंपराओं के कारण बिस्मिल्ला खाँ दु:खी थे।

Question 6:

पाठ में आए किन प्रसंगों के आधर पर आप कह सकते हैं कि –

(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।

(ख) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इनसान थे।

Answer:

(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली जुली संस्कृति के प्रतीक थे। उनका धर्म मुस्लिम था। मुस्लिम धर्म के प्रति उनकी सच्ची आस्था थी परन्तु वे हिंदु धर्म का भी सम्मान करते थे। मुहर्रम के महीने में आठवी तारीख के दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते थे व दालमंडी मे फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते जाते थे।

इसी तरह इनकी श्रद्धा काशी विश्वनाथ जी के प्रति भी अपार है। वे जब भी काशी से बाहर रहते थे। तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते थे और उसी ओर शहनाई बजाते थे। वे अक्सर कहा करते थे कि काशी छोड़कर कहाँ जाए, गंगा मइया यहाँ, बाबा विश्वनाथ यहाँ, बालाजी का मंदिर यहाँ। मरते दम तक न यह शहनाई छूटेगी न काशी।

(ख) बिस्मिल्ला खाँ एक सच्चे इंसान थे। वे धर्मों से अधिक मानवता को महत्व देते थे, हिंदु तथा मुस्लिम धर्म दोनों का ही सम्मान करते थे, भारत रत्न से सम्मानित होने पर भी उनमें घमंड नहीं था, दौलत से अधिक सुर उनके लिए ज़रुरी था।

Question 7:

बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया?

Answer:

बिस्मिल्ला खाँ के जीवन में कुछ ऐसे व्यक्ति और कुछ ऐसी घटनाएँ थीं जिन्होंने उनकी संगीत साधना को प्रेरित किया।

(1) बालाजी मंदिर तक जाने का रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर जाता था। इस रास्ते से कभी ठुमरी, कभी टप्पे, कभी दादरा की आवाज़ें आती थी। इन्हीं गायिका बहिनों को सुनकर इन्हें प्रेरणा मिली।

(2) बिस्मिल्ला खाँ जब सिर्फ़ चार साल के थे तब छुपकर अपने नाना को शहनाई बजाते हुए सुनते थे। रियाज़ के बाद जब उनके नाना उठकर चले जाते थे तब अपनी नाना वाली शहनाई ढूँढते थे और उन्हीं की तरह शहनाई बजाना चाहते थे।

(3) बचपन में वे बालाजी मंदिर पर रोज़ शहनाई बजाते थे। इससे शहनाई बजाने की उनकी कला दिन-प्रतिदिन निखरने लगी।

Question 8:

बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?

Answer:

बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की निम्नलिखित बातें हमें प्रभावित करती हैं –

(1) ईश्वर के प्रति उनके मन में अगाध भक्ति थी।

(2) मुस्लिम होने के बाद भी उन्होंने हिंदु धर्म का सम्मान किया तथा हिंदु-मुस्लिम एकता को कायम रखा।

(3) भारत रत्न की उपाधि मिलने के बाद भी उनमें घमंड कभी नहीं आया।

(4) वे एक सीधे-सादे तथा सच्चे इंसान थे।

(5) उनमें संगीत के प्रति सच्ची लगन तथा सच्चा प्रेम था।

(6) वे अपनी मातृभूमि से सच्चा प्रेम करते थे।

Question 9:

मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।

Answer:

मुहर्रम के महीने में शिया मुसलमान शोक मनाते थे। इसलिए पूरे दस दिनों तक उनके खानदान का कोई व्यक्ति न तो मुहर्रम के दिनों में शहनाई बजाता था और न ही संगीत के किसी कार्यक्रम में भाग लेते थे। आठवीं तारीख खाँ साहब के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती थी। इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते और दालमंड़ी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते हुए जाते थे। इन दिनों कोई राग नहीं बजता था। उनकी आँखें इमाम हुसैन और उनके परिवार के लोगों की शहादत में नम रहती थीं।

Question 10:

बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे, तर्क सहित उत्तर दीजिए।

Answer:

बिस्मिल्ला खाँ भारत के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक थे। इसके लिए उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया है। 90 वर्ष की उम्र में भी उन्होंने शहनाई बजाना नहीं छोड़ा। उन्होंने जीवनभर संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने अंदर जिंदा रखा। उनमें संगीत को सीखने की इच्छा कभी खत्म नहीं हुई। खुदा के सामने वे गिड़गिड़ाकर कहते – ”मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।” खाँ साहब ने कभी भी धन-दौलत को पाने की इच्छा नहीं की बल्कि उन्होंने संगीत को ही सर्वश्रेष्ठ माना। वे कहते थे – ”मालिक से यही दुआ है – फटा सुर न बख्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।”

इससे यह पता चलता है कि बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे।

Question 11:

निम्नलिखित मिश्र वाक्यों के उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए –

(क) यह ज़रुर है कि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं।

(ख) रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है।

(ग) रीड नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यत: सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है।

(घ) उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा।

(ङ) हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है।

(च) खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।

Answer:

(क) शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। (संज्ञा आश्रित उपवाक्य)

(ख) जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। (विशेषण आश्रित उपवाक्य)

(ग) जो डुमराँव में मुख्यत: सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। (विशेषण आश्रित उपवाक्य)

(घ) कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा। (संज्ञा आश्रित उपवाक्य)

(ङ) जिसकी गमक उसी में समाई है। (विशेषण आश्रित उपवाक्य)

(च) पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा। (संज्ञा आश्रित उपवाक्य)

Page No 123:

Question 12:

निम्नलिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में बदलिए–

(क) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं।

(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।

(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।

(घ) काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।

Answer:

(क) यह वही बालसुलभ हँसी है जिसमें कई यादें बंद हैं।

(ख) काशी में संगीत का आयोजन होता है जो कि एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।

(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न हमको लुंगिया पे नाहीं, शहनईया पे मिला है, ।

(घ) यह जो काशी का नायाब हीरा है वह हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।

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